Friday, October 21, 2016

मेरो बदलो फिल्म में मुझे पंकज ने सचमुच मारा |

बहुत समय बाद समय मिला तो मेने सोचा कुछ अनुभव साझा किया जाए |
वैसे तो मेरो बदलो रिलीज हुई अवार्ड्स मिले और अभी भी चर्चा में हैं | आगे इसे ले कर कुछ अटकलें लगाईं जा रही है |
खैर ....अब कुछ अनुभव कैमेरा फेसिंग और लाइट कैमरा एक्शन का अनुभव ..|
किसी फिल्म लेखन का पहला काम था साथ गायन लिखना और भूमिका भी, सच पूछा जाए इस फिल्म में महेंद्र जी के अलावा कई और भी है जिन्होंने एक काम के अलावा कई काम किये | जैसे जितेन बोरो जो की कमरा मेंन थे हर तरह का कार्य किया |
मैं पहले पहुँच चुका था सरदारशहर अब बाकी कलाकार आने वाले थे | गोपालजी आये, पंकज जी पूनिया आये | हिसाम खान जी आये | सब ठीक थे, लेकिन जब पंकज जी पूनिया आये तो मुझे लगा इनके साथ शायद मेरी नहीं जमेगी, एक होता हैं न की आदमी पूर्वाग्रह से ग्रसित, वही स्थिति थी | मैं उनसे प्रभावित तो बहुत था, पर वो मुझे कुछ तवज्जो नहीं देते थे जिसकी वो तज्बो  कहते हैं |
मैं अपनी अकड  में था की भई  आखिर में राइटर हूँ ....(हा हा हा )|
अब पंकज को कई जगह जब मेने dilogue वगेरह बताये तो उनके भी समझ आ चुका था की बन्दा है तो कुछ चीज,
धीरे धीरे नजदीकियां  बढती गई और उसके बाद एक दुसरे के इतने आदि हो चुके की बिना एक के दुसरे का मन नहीं लगता |
कारण था की वो भी बड़े मजाकि और में भी छोटा मोटा मजाकि ....|
और महेंद्र जी जो हर स्थिति में हौसला बढाते और मिमिक्री का शो उनका चलते रहता | हम तीनो में कोई ऐसा नहीं था की की अगर मकोई जोर जोर से गाये तो कोई टोके या कोई किसी की मिमिक्री करे तो तो टोके बल्कि साथ देते | एक होता हाँ न की अगर कोई बन्दा साथ रह रहा है और पुरे दिन पागलों वाली हरकत करे जैसे कभी गाना कभी डायलोग तो कभी न कभी तो टोक ही देगा, की यार कभी तो चुप बैठो....
पर हम तीनो में यही खासियत थी की एक करता तो दुसरे को अच्छा लगता |
बहुत सी जगह खित पिट भी हुई हम तीनो में ही ...
एक सीन था जहां भिन्वराज ( पंकज पूनिया ) अपने गुंडों के साथ आता है सेठ गिरधारी लाल का मर्डर करने ..जहां ये सीन फिल्माया जा रहा था वो जगह थी सरदारशहर ताल के बगल वाली गली में |
और पुब्लिक इतनी की संभाले नहीं संभल रही थी कभी कोई आगे आता कभी कोई | पास ही में पारीक सभा चल रही थी कोई बड़ा फंक्शन था |
इतने में कई सज्जन आये और मुझसे बातें करने करने लगे सिलीगुड़ी से थे कोई पारीक भाई ..वो मेरे साथ फोटो खिंचवाना चाह रहे थे, अब भीड़ काबू म नहीं हो रही थी शॉट नहीं ले पा रहे थे साथ में वो बात कर रहे हैं फोटो खिंचवा रहे हैं ...महेंद्र जी को गुस्सा आया और मुझे बहुत डांटा ..अब पंकज को मेरे पर और गुस्सा आया की ये तो यहाँ फोटो खिंचवा रहा है | मेने उन पारीक भाइयो से माफ़ी मांग कर कहा फिर कभी |
उसके तुरंत बाद मुझे थप्पड़ मारने का सीन था जो भींवराज ( पंकज पूनिया ) मारता है |
वो थप्पड़ अब भी मुझे याद है, सचमुच का जोरदार तमाचा मेरे गाल पे पंकज ने फिल्म की आड़ में जड़ दिया |
अब में भी गुस्से में तमतमा गया जो डायलोग और एक्सप्रेशन निकले वो भी असली निकले.. शिव ( महेंद्र ) मुझे पकडे रखता है मैं कहता हूँ ..छोड़ यार तू मैं बताउंगा इसको ..शॉट पूरा हुआ भीड़ ने तालिया बजाई सब कुछ शांत ...

टीम सारी ही बड़ी अच्छी थी पंकज पूनिया महेंद्र जी और में सूटिंग से लेकर रिलीज तक साथ ही रहे |
यूँ कहिये की एक प्रयास था बिना पूंजी का जिसमे लगभग पचास लाख का बजट पड़ गया |
फिल्म का सबकुछ इतना गज़ब होने के बावजूद ख़ास चल नहीं पायी तो सिर्फ एक वजह वो है फाइनेंस |
PRAMOTION और रिलीजिंग के लिए पर्याप्त धन नहीं था| जिसके चलते श्रोताओं तक पहुँचने में नाकाम रही |